The Union Minister for Rural Development, Dr. Raghuvansh Prasad Singh briefing the press about various achievements of Total Sanitation Campaign highlighting the revised unit cost norms under TSC, in New Delhi on August 22, 2008.

वाणीश्री न्यूज़, पटना . ब्रह्म बाबा गांव के चौकीदार देव होते हैं। हर कार्य में उनका आशीर्वाद लिया जाता है। बचपन की मस्ती से लेकर जीवन के अंतिम क्षण तक ब्रह्म बाबा का वास जिस पीपल के पेड़ में होता है उसकी डालियों तक से जुड़ी होती है स्मृतियां। उस देवत्व पेड़ की छांव में काफी सुकून मिलता है.उसकी शीतल छाया मानो आशीष देती हो. जो अपने सम्मोहन से अपनी ओर खिंचते है वह है ब्रह्म बाबा. इनके दर से कोई खाली नहीं जाता यहां सबकी मुरादें पूरी होती मिट्टी में लोटते इंसान की किस्मत कैसे पलट जाती है यह हर वह इंसान देख चुका है जिसका जुड़ाव गांव से है व गांव के सबसे शक्तिशाली देवता ब्रह्म बाबा से भी.

बिहार की राजनीति के वही ब्रह्म बाबा  थे रघुवंश प्रसाद सिंह. वरिष्ठ नेता रघुवंश प्रसाद सिंह के निधन से ना सिर्फ बिहार ने बल्कि भारतीय राजनीति ने एक अनुभवी

और जमीनी स्तर का जननेता खो दिया। रघुवंश प्रसाद सिंह जेपी आंदोलन से उभरे नेता थे और जब देशभर में छात्र आंदोलन जोर पकड़ रहे थे, उस वक्त वह सीतामढ़ी के गोयनका कॉलेज में गणित के लेक्चरर थे। इसके अलावा वह संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के सचिव भी हुआ करते थे। यही वजह है कि छात्र आंदोलन के दौरान वह गिरफ्तार हुए और तीन माह जेल में रहकर आए।

रघुवंश प्रसाद सिंह के बारे में कहा जाता है कि वह एक फक्कड़ नेता थे और कॉलेज हॉस्टल में रहने के दौरान सिर्फ भूजा खाकर अपना पेट भर लेते थे। दरअसल तन्खवाह से घर का खर्च निकालने के बाद इतने पैसे भी नहीं बचते थे कि दो वक्त की रोटी का ढंग से जुगाड़ हो सके। आपातकाल के बाद साल 1977 में हुए चुनाव में कांग्रेस की हार हुई और जनता पार्टी की सरकार सत्ता में आयी।जनता पार्टी ने कांग्रेस की सत्ता वाली 9 राज्य सरकारों को बर्खास्त कर दिया जिसमें बिहार भी शामिल था।

इसके बाद बिहार में विधानसभा के चुनाव हुए और कर्पूरी ठाकुर से नजदीकी और छात्र आंदोलन से मिली लोकप्रियता के दम पर रघुवंश प्रसाद सिंह को सीतामढ़ी की बेलसंड सीट से टिकट मिल गया और वह चुनाव जीत भी गए। इतना ही नहीं वह बिहार सरकार में मंत्री भी बने।साल 1988 में कर्पूरी ठाकुर के निधन के बाद रघुवंश प्रसाद सिंह, लालू यादव के करीब आ गए और राजद के शासनकाल में बिहार सरकार में मंत्री रहे। साल 1996 में लोकसभा का चुनाव लड़कर रघुवंश प्रसाद सिंह केन्द्र की राजनीति में आ गए और पहले एचडी देवेगौड़ा और फिर इंद्र कुमार गुजराल की सरकार में मंत्री रहे।साल 1999 में लालू यादव लोकसभा का चुनाव हार गए। जिसके चलते रघुवंश प्रसाद सिंह राजद के संसदीय दल के नेता चुने गए।

इसी दौरान विपक्ष में बैठते हुए रघुवंश प्रसाद सिंह केन्द्र की अटल बिहारी वाजपेयी के खिलाफ जिस तरह से सदन में तर्क करते थे, उससे उन्हें देशभर में पहचान मिली।रघुवंश प्रसाद सिंह का रोजगार गारंटी कानून बनाने में अहम योगदान रहा, जिसे बाद में मनरेगा के रूप में पहचान मिली। दरअसल यूपीए 1 के कार्यकाल में रघुवंश प्रसाद सिंह को ग्रामीण विकास मंत्रालय का जिम्मा सौंपा गया था। इसी दौरान सदन में लंबी जिरह और तथ्यों से रघुवंश प्रसाद सिंह ने रोजगार गारंटी कानून बनाने में अहम योगदान दिया।बताया जाता है कि कांग्रेस आलाकमान रघुवंश प्रसाद सिंह से इतने प्रभावित था कि यूपीए 2 की सरकार में जब राजद केन्द्र में शामिल नहीं हुई तब कांग्रेस आलाकमान ने रघुवंश प्रसाद सिंह को कांग्रेस में शामिल होने और ग्रामीण विकास मंत्रालय देने की पेशकश भी की थी।

हालांकि सिंह ने यह ऑफर ठुकरा दिया था और लालू यादव के साथ जमे रहे।लालू प्रसाद यादव और रघुवंश प्रसाद सिंह की दोस्ती 32 साल पुरानी थी और रघुवंश प्रसाद सिंह ही ऐसे इकलौते नेता थे, जो खुलेआम लालू यादव के फैसलों की आलोचना कर सकते थे। हालांकि दोनों की आपसी समझ भी ऐसी रही कि दोनों हर मुश्किल घड़ी में एक दूसरे के फैसलों के साथ खड़े रहे।
©अनूप

 

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