फेफड़ों के बाद अगर कोरोना ने किसी को सबसे ज्यादा उधेड़ा है तो वह है रिश्ता। जहां इस बुरे वक्त में सभी को एक साथ खड़ा होकर मरीजों की हिम्मत बढ़ानी चाहिए वही अपने ही लोग अपनों के साथ खड़ा होने को तैयार नहीं। वहीं दुकान की शटर खोलकर ग्राहक को सामान दे सकते हैं, दूध वालों से दूध ले सकते हैं, सब्जी फल वाले से सब्जियां फल ले सकते हैं बगैर यह जाने कि कोई कोरोना संक्रमित तो नहीं। ग्राहक को अपने घर बुलाकर चोरी छुपे सामान दे सकते हैं लेकिन घर रिश्तेदार या मित्र में से किसी को भी मदद की जरूरत पड़ गई, तो घर से बाहर पैर भी नहीं निकाल रहे लोग।
हाल यह है कि जो माता-पिता जन्म दिए, जिन भाइयों के साथ एक आंगन में खेलें कूदे,साथ बड़ा हुए, जो समाज के लोगों के साथ दिन-रात समय बिताएं, अचानक एक दिन सब अनजान बन जाते हैं। यहां तक कि उन लोगों को पता है कि जीवन क्षणभंगुर है।मौतें हजारों कारण और बहाने लेकर आता है। सही मायने में खोखले रिश्तो पर से अगर पर्दा हटाया है तो वह है कोरोना। यह कहानी रहिमापुर निवासी अमोद कुमार सिंह की है। जब अचानक उनकी तबीयत खराब हुई तो उन्होंने अपने बड़े साला शिवचंद्र सिंह जो आरपीएफ सब इंस्पेक्टर प्रयागराज में हैं उनको बताएं। जानकारी मिलते ही शिवचंद्र सिंह उसी समय से उन्हें मोबाइल पर ही गर्म पानी से गरारा करवाना, गर्म पानी पिलाना, भाप लेना, काढा पिलना शुरू करवा दिए। क्योंकि जानकारी के अनुसार जो भी उन्होंने बताया सब कोरोना का लक्षण था।
इतना करने के बाद जब उनकी स्थिति में सुधार नहीं आई तो उनका कोरोना जांच पीएचसी बिदुपुर में करवाई गई जहां उनका रिपोर्ट नेगेटिव बताया गया।लेकिन उसी दिन प्राइवेट से आरटीपीसीआई द्वारा जांच कराई गई तो रिपोर्ट पॉजिटिव आया। रिपोर्ट देखते ही आमोद सिंह का जैसे हाथ पैर सुन हो गया। इसकी जानकारी शिवचन्द्र सिंह ने अपनी छोटी बहन चकसिकंदर निवासी सविता को दिए, जो अखिल भारतीय आंगनवाड़ी कर्मचारी महासभा के प्रदेश महासचिव भी है।खबर मिलते ही सविता ने अपने बहनोई अमोद कुमार सिंह से फोन पर बात कर सभी जानकारीयां ली। फिर क्या था दोनों भाई बहन मिलकर मोबाइल पर आमोद जी को कोरोना की दवा के साथ साथ घरेलू उपचार भी शुरू कर दिए और यह फैसला ले लिए कि चाहे कुछ भी हो जाए उन्हें स्ट्रेस नहीं होने देंगे एवं कोरोना को मात देकर ही दम लेंगे।
प्रयागराज से श्री सिंह एवं चकसिकंदर से सविता मॉनिटरिंग करना शुरू कर दी। अचानक अमोद सिंह को घबराहट इतना ज्यादा हो गई कि दो रात पूरी बेचैन हो गए और मान लिए यही रात अंतिम,यही रात भारी। शायद कल का सुबह नहीं देख पाऊंगा।लेकिन दोनों भाई बहन ने मोबाइल से दिन भर में 8 से 10 घंटे उनसे बातें करते, हंसाते, हौसला बढ़ाते कि ये कोरोना क्या है,कुछ भी नहीं। ऐसे ऐसे कोरोना को तो हम फूंक मारकर उड़ा देते हैं। उन्हें दवा के साथ-साथ टाइम टू टाइम काढ़ा, भाप, गरारा करवाते,दैनिक चार्ट के अनुसार पौष्टिक आहार,हल्दी वाला दूध, तुलसी और गिलोय वाली काढा,नींबू पानी, ड्राई फ्रूट्स इत्यादि खिलवाते।जिससे इम्यूनिटी बना रहे। उन्हें मानसिक और शारीरिक रूप से स्ट्रांग बनाने के लिए जो भी हथकंडे अपनाने थे उन दोनों भाई बहन ने अपनाया।
यहां तक कि कोरोना टीका स्थल ड्यूटी से छूटने के बाद खुद चकसिकंदर से दवा लेकर सविता रहीमापुर पहुंचाई और खाने को बताई। रोज इसी तरह समय गुजरता गया। फिर अचानक रात में आमोद जी के सीने में दर्द होने की जानकारी सविता को दी गई, तब उन्होंने अपने बड़े भाई श्री सिंह से बातें की एवं फिर दोनों भाई बहन मिलकर उनका हौसला बुलंद किया। फिर दूसरी रात आमोद जी हाथ पैर का नस खींचने की शिकायत की गई, फिर 10:00 बजे रात में डॉक्टर से बात कर उन्हें नींबू पानी पिलाकर फिर उन्हें नॉर्मल किया गया। उनके ससुराल वाले खुद टेंशन में थे लेकिन उनका हौसला बुलंद बनाए रखें। उन्हें कमजोर नहीं पड़ने दिए और अंततः उन्होंने कोरोना को मात दे ही दिया।वही उनकी पत्नी अनिता कुमारी जो आशा कार्यकर्ता है एवं बेटा विशाल कुमार, कौशल कुणाल एवं बेटी कोमल कुमारी ने उनका विशेष ख्याल रखा। बाद बाकी समाज, परिवार वालों ने तो मुंह ही मोड़ लिया।यहां तक की पिता भी।
आमोद जी खुद बताते हैं कि कितना भी दुख बड़ा क्यों ना हो अगर परिवार और समाज वालों का साथ मिले तो हर बीमारी छोटा पड़ जाता है।लेकिन जब परिवार वाला ही मुंह मोड़ ले, तो छोटा से छोटा बीमारी भी बहुत बड़ा हो जाता है और आदमी मर जाता है। आज जो मेरे साथ घटना घटी शायद मेरे ससुराल वाले, मेरे साला साली मेरे साथ दिन रात खड़े नहीं रहते, मुझे हिम्मत नहीं देते, मेरा हौसला नहीं बढ़ाते तो शायद आज मैं भी आप लोगों के बीच नहीं होता। इसका श्रेय श्री सिंह को जाता है मैं आजीवन उनका ऋणी रहूंगा। क्योंकि यह मेरा पुनर्जन्म है। इसलिए अगर आप लोग किसी के घर जाने में असमर्थ है तो फोन से ही उनकी हौसला को बढ़ाते रहें, उनसे बातें करते रहे, उनको मोटिवेट करते रहे। ताकि वह हर बीमारी को मात दे सके।
वहीं श्री सिंह कहते हैं कि भगवान ने इंसान को बनाया है ताकि वह बुरे वक्त में दूसरे इंसान को सहायता कर सकें। जो मानवता को भूल जाए और बुरे वक्त में किसी का साथ ना दे तो अच्छे वक्त में साथ रहने से क्या फायदा। यह मेरा कर्तव्य है और माता पिता के दिया हुआ संस्कार। परिवार और समाज के लोगों को हर सुख-दुख में साथ निभाने का मैं अपने दिल से दृढ़ संकल्पित हूं। और मैंने वही किया है जो एक इंसान को दूसरे इंसान के लिए करना चाहिए।