वाणीश्री न्यूज़, वैशाली। कई वर्षों से लंबित मांग हाजीपुर सुगौली रेल खंड स्थित लालगंज रेलवे स्टेशन का नामकरण संयुक्त बिहार के प्रथम स्वतंत्रता सेनानी जिन्होंने भारत माता को परतंत्रता की बेरी से आजाद कराने के लिए हंसते-हंसते अपने प्राणों की बाजी लगा दी और भारत मां के लिए शहीद हो गए, ऐसे “अमर शहीद बैकुंठ शुक्ला” के नाम पर करने हेतु युवा एकता मंच के प्रदेश उपाध्यक्ष सह भारद्वाज फाउंडेशन सचिव, भाजयुमो नेता हंसराज भारद्वाज ने कल केंद्रीय मंत्री पशुपति पारस जी से मिलकर एक ज्ञापन सौंपा जिस पर त्वरित कार्रवाई करते हुए माननीय केंद्रीय मंत्री सह सांसद पशुपति पारस जी ने केंद्रीय रेल मंत्री अश्वनी वैष्णव जी को पत्र लिखते हुए आग्रह किया कि जन भावना को देखते हुए इस कार्य को जल्द से जल्द पूर्ण कराने की दिशा में आवश्यक निर्देश देने की कृपा की जाए।
बताते चलें कि देश के स्वतंत्रता संग्राम में वैशाली जिले के लालगंज प्रखंड अंतर्गत जलालपुर गांव के लाल महान क्रांतिकारी अमर शहीद बैकुंठ शुक्ला जी के बलिदान को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए युवा एकता मंच के अध्यक्ष सह लोजपा नेता संजीत चौधरी जी के नेतृत्व में पिछले 8–9 वर्षों से उनका शहादत दिवस मनाया जा रहा है।
अमर शहीद बैकुंठ शुक्ला जी का जन्म बिहार के वैशाली जिला स्थित लालगंज प्रखंड के जलालपुर गांव में हुआ था। 1921 में भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को लाहौर षड्यंत्र कान में फांसी की सजा के ऐलान के बाद पूरे भारत में गुस्से की लहर फैल गई थी। फनींद्रनाथ जो खुद रिवॉल्यूशनरी पार्टी के सदस्य अंग्रेजी हुकूमत के दबाव में आ गए और लालच में आकर सरकारी गवाह बन गए और उनकी गवाही पर तीनों वीर क्रांतिकारियों को फांसी की सजा सुनाई गई।
उसी घोष के विश्वासघात की सजा देने का बीड़ा बैकुंठ शुक्ला जी ने उठाया और 9 नवंबर 1932 को घोष को मार कर इसे पूरा किया। उन्होंने फनींद्रनाथ घोष को दिनदहाड़े बेतिया के मीना बाजार में कुल्हाड़ी से काटकर मौत के घाट उतार दिया था और इसी घोष की हत्या के आरोप में अमर शहीद बैकुंठ शुक्ला जी को अंग्रेज सरकार की तरफ से फांसी की सजा मिली।
फणींद्रनाथ की मौत पर ब्रिटिश सरकार की नींव हिल गई थी। जोर-शोर से हत्यारों की तलाश शुरू हुई मौके पर दोनों क्रांतिकारियों की जो साइकिले पड़ी थी उनके कैरियर से प्राप्त गठरी में से धोती, छुड़ा, सेफ्टी रेजर, आईना और टॉर्च बरामद हुए थे। धोती पर धोबी का नंबर लिखा था इससे पुलिस को रास्ता मिल गया और वह दरभंगा मेडिकल कॉलेज के छात्रावास में रहने वाले बैकुंठ शुक्ला के ग्रामीण गोपाल नारायण शुक्ल तक पहुंच गई।
ग्रामीण गोपाल नारायण शुक्ल ने स्वीकार कर लिया कि 4 नवंबर को बैकुंठ शुक्ला छात्रावास आए थे और बताया था कि मोतिहारी जाना है।उन्होंने ही उसे धोती, रेजर आदि सामान दिए थे। इस प्रकार फणींद्र नाथ बोस के हत्यारों के रूप में बैकुंठ शुक्ल और चंद्रमा सिंह की पहचान हुई सरकार ने बैकुंठ शुक्ल की गिरफ्तारी परिणाम की घोषणा कर दी थी। बाद में चंद्रमा सिंह 5 जनवरी 1933 को कानपुर से जबकि बैकुंठ शुक्ल 6 जुलाई 1933 को हाजीपुर गंडक पुल सोनपुर वाले छोड़ से गिरफ्तार कर लिए गए। गिरफ्तारी के समय उन्होंने इंकलाब जिंदाबाद और योगेंद्र शुक्ला की जय के नारे लगाए।
मुजफ्फरपुर में दोनों सूर्य वीरों को फणीन्द्रनाथ घोष की हत्या का मुकदमा चला। 30 फरवरी 1934 को सत्र न्यायाधीश ने फैसला सुनाते हुए बैकुंठ शुक्ला जी को फांसी की सजा दे दी जबकि चंद्रमा सिंह को दोषी नहीं पाते हुए रिहा कर दिया बैकुंठ शुक्ल ने सत्र न्यायाधीश के फैसले के खिलाफ पटना हाई कोर्ट में अपील की लेकिन 18 अप्रैल 1934 को हाईकोर्ट ने सत्र न्यायाधीश के फैसले को पुष्टि कर दी। इस फैसले ने 14 मई 1934 को सर अंजाम पाया और गया सेंट्रल जेल में बैकुंठ शुक्ला जी को फांसी दे दी गई।
अतः केंद्र सरकार जल्द से जल्द लालगंज रेलवे स्टेशन का नाम “अमर शहीद बैकुंठ शुक्ला” जी के नाम पर करे, जो कि उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी एवं आने वाले पीढ़ी के लिए एक मिसाल बनेगी।