लूट खसोट से भरी जिंदगी मनरेगा। जिसको देखो सब लूटने पर लगे है।
मनरेगा का जन्म भारत में मजदूरों को रोजगार गारंटी के लिए 2 अक्टूबर 2005 में हुआ था। इसका पूरा नाम महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी है। जन्म होने के बाद कुछ सालों तक यह खुशियां मनाती रही लेकिन इसकी खुशियां समाज के चंद लोगों ने सरकारी तंत्र की सहभागिता से उजाड़ने का काम किया। धीरे-धीरे इसकी खुशियां ऐसी खत्म हुई मानो इसकी जिंदगी जिंदगी नहीं नर्क से भी बदतर हो गई। इसकी अस्मत दिन प्रतिदिन विभिन्न विभिन्न लोगों द्वारा समय-समय पर लूटी गई बेचारी तड़पती रोती बिलखती इसी आस में जीने को मजबूर हो गई कि कोई ऐसा आएगा जो मेरे लिए आवाज उठाएगा और मुझे भी हक दिलाएगा।
मुख्य रूप से मनरेगा में आज पूर्ण रूप से लूट का सूट की जा रही है जिन मजदूरों के नाम पर कार्ड बना है और सरकार से पैसा उनके नाम पर लिए जा रहे हैं। असल में काफी संख्या में वह मौजूद ही नहीं है कहीं और कार्य में लगे हैं और उनका मनरेगा में काम करने का पैसा कमीशन लेकर जनप्रतिनिधियों द्वारा दिया जा रहा है। सभी जगह पर कराए जाने वाले कार्यों को आधुनिक मशीनों द्वारा करवा दिया जा रहा है और पैसे का लेनदेन कर दिया जा रहा है। कार्यों को ही लीजिए बालू भराई, भूमि समतलीकरण कार्य सिर्फ कागजी रूप से हो रही है