एक तरफ जहां सरकार लोगों को नौकरी दे रही है वहीं दूसरी तरफ कई वर्षों से दैनिक पारिश्रमिक पर कार्य कर रहे लोगों से काम छीन भी रहा है।
हम कह सकते हैं कि सरकार उन्हें दैनिक पारिश्रमिक पर रखी हुई थी लेकिन जो व्यक्ति पिछले 8-10 वर्षों से लगातार एक ही जगह पर सरकार के हर कार्यों में दिन रात एक कर पदाधिकारियों के साथ कदम से कदम मिलाकर उनके आदेश को पूरा करने में लगे हुए थे उन्हें अचानक इस प्रकार से उनके कार्यों से हटा देना कहां तक जायज है ? आखिर वह अचानक क्या काम करेंगे?
हम बात करते हैं विभिन्न प्रखंड एवं अंचलों में कार्यरत चालकों की जो पिछले कई वर्षों से पदाधिकारी की सरकारी गाड़ी दैनिक पारिश्रमिक पर चलाते आ रहे हैं और इसी से उनका पूरा परिवार का भरण-पोषण चल रहा है। अचानक सचिव बिहार कर्मचारी चयन आयोग पटना के पत्रांक के आलोक में जिला स्थापना वैशाली द्वारा जिला के 14 जगहों पर चालक की प्रतिनियुक्ति कर दी गई जिसके कारण वहाँ के चालक बेरोजगार हो गए जिससे उनके सामने भूखमरी की समस्या उत्पन्न हो गईं।
इस संबंध में दैनिक पारिश्रमिक पर कार्यरत चालकों ने जिलाधिकारी, श्रम अधीक्षक, आयुक्त तिरहुत प्रमंडल, स्थानीय विधायक, मंत्री राजस्व एवं भूमि सुधार ,मंत्री ग्रामीण विकास विभाग, माननीय मुख्यमंत्री बिहार को पत्र के माध्यम से अवगत कराते हुए बेरोजगारी और भुखमरी की समस्या से निजात दिलाने एवं योग्यता एवं नियमानुकूल सामंजन करने को लेकर आवेदन भी दिया है।
सवाल सिर्फ वैशाली जिले के दैनिक पारिश्रमिक पर कार्य कर रहे 14 कर्मियों की नही है सवाल पूरे राज्य के कर्मियों की है आखिर वे करें तो क्या करें ? इस प्रकार उन्हें कार्य से निकलना सरकार की गलत नीति दो दर्शाता है।