भारत में जून ,जुलाई और अगस्त बारिश के महीने होते हैं और पिछले कुछ दिनों से पूरे उत्तर भारत में भारी बारिश से जनजीवन अस्त व्यस्त हो गया है। कहीं कहीं तो बारिश ने भारी तबाही मचाई है। सच तो यह है कि बारिश देश में इन दिनों आफ़त बनकर बरस रही है। हाल ही में मौसम विभाग द्वारा 13 अगस्त को ही केरल, राजस्थान, तमिलनाडु, पुडुचेरी, कराईकल और उत्तराखंड में भारी बारिश का ऑरेंज अलर्ट जारी किया गया। वहीें दिल्ली में 16 अगस्त तक मध्यम से तेज बारिश की चेतावनी जारी की गई है।
लगातार बारिश के कारण देश में निचले इलाकों में जलभराव की समस्या उत्पन्न हो गई है, वहीं बारिश के कारण सड़कों को भी बहुत नुकसान पहुंचा है। देश के विभिन्न हिस्सों में अनेक सड़क मार्गों पर इन दिनों ट्रैफिक जाम की समस्या पैदा हो गई है। हिमाचल प्रदेश से लेकर केरल तक बारिश कहर बरपा रही है। पंजाब, उत्तराखंड, हरियाणा, दिल्ली, पूर्वी राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों, उप-हिमालयी पश्चिम बंगाल, झारखंड, पूर्वोत्तर भारत, केरल, तमिलनाडु, और दक्षिण कर्नाटक में इन दिनों बारिश का दौर जारी है। रह-रहकर कहीं हल्की तो कहीं मध्यम और तेज बारिश हो रही है। नदियां और नालें इन दिनों उफान पर बह रहे हैं। सच तो यह है कि बारिश हमारे देश के नगर नियोजन की पोल खोलती नज़र आती है। आज देश में अनेक सड़कों पर तीन से चार फीट तक पानी जमा नजर आ रहा है। महानगरों से लेकर छोटे शहरों, गांव गलियों, चौराहों तक का बुरा हाल है।
हिमाचल में यह हाल है कि अचानक भारी बारिश के कारण पांच राष्ट्रीय सड़क मार्ग बंद हो गए और हिमाचल में 288 विभिन्न सड़कें बंद हो गई। उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्य में बारिश के दौरान अनेक सड़कें अवरूद्ध हो जाती हैं, जिससे आमजन को बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। केरल के वायनाड में जान-माल को हाल ही में काफी नुकसान पहुंचा। केरल ही नहीं अब तो लगभग लगभग संपूर्ण उत्तर भारत बारिश की चपेट में है। मीडिया के हवाले से पता चला है कि उत्तर प्रदेश के 15 जिलों में बाढ़ आ गई है। वाराणसी में 65 घाट डूब गए हैं। जगह-जगह एनडीआरएफ को तैनात किया गया है। मध्य प्रदेश में एक तालाब फूट गया, 20 गांवों में अलर्ट जारी किया गया है। दरअसल, मध्य प्रदेश के मुरैना में तालाब फूटने से 4 गांवों में पानी घुस आया है।
इधर, उत्तर प्रदेश में गंगा और यमुना उफान पर हैं। 15 जिलों में बाढ़ जैसे हालात हैं। ख़बरें आ रही हैं कि लखीमपुर में शारदा नदी का जलस्तर बढ़ने के कारण 250 गांवों में पानी भर गया है और करीब 2.50 लाख लोग प्रभावित हैं।
हिमाचल प्रदेश के चंबा में सोमवार (12 अगस्त) को पहाड़ी से पत्थर गिरने से 2 लोगों की मौत हो गई। इतना ही नहीं, यह भी खबरें आईं हैं कि हिमाचल प्रदेश में लैंडस्लाइड-बाढ़ के कारण शिमला-किन्नौर सहित 2 नेशनल हाईवे और 195 सड़कें बंद हैं। ऊना में 11 अगस्त को 3 लड़कियां बाढ़ में बह गईं। यह बहुत ही दुखद है कि 27 जून से 12 अगस्त के बीच हिमाचल में बारिश से जुड़ी घटनाओं में 110 लोग मारे गए हैं और राज्य को लगभग 1,004 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ।
मध्य प्रदेश के मुरैना में टोंगा तालाब जो कि 140 साल पुराना है, फूट गया है। इससे करीब 25 गांवों में सिंचाई होती है। राजस्थान के टोंक, जयपुर व कोटा में बारिश से आम जनजीवन प्रभावित हुआ है। पंजाब में भी अनेक स्थानों पर बारिश आफत बनकर टूटी है। इन सबके बीच यह कहना ग़लत नहीं होगा कि आज संचार क्रांति का युग है, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का युग है। इसका इस्तेमाल मानव जीवन व संपत्ति सुरक्षा में किया जा सकता है, लेकिन इनका सही इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है।
बारिश से फसलों को भी बहुत नुक्सान पहुंचा है। हम राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस मनाते हैं और इसमें इस बात पर अनेक चर्चाएं और विचार विमर्श करते हैं कि आपदा प्रबंधन में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का कैसे इस्तेमाल किया जा सकता है ?, लेकिन यह कड़वा सच है कि धरातल पर हम ज्यादा कुछ नहीं कर पाते हैं। हमारी अनेक योजनाएं तो कागजों तक ही सीमित रह जाती हैं।भारत एक मानसूनी प्रदेश है , मानसून आने से पहले ही आपदा प्रबंधन नीतियों की समीक्षा, तैयारियां की कर ली जानी चाहिए ताकि समय आने पर हम ठोस कदम उठा सकें। प्यास लगने पर कुआं खोदना उचित नहीं ठहराया जा सकता है। जब तक हम जागते हैं तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। भारत में घटित होने वाली सभी प्राकृतिक आपदाओं में सबसे अधिक घटनाएँ बाढ़ की हैं।वास्तव में, इसका कारण भारतीय मानसून की अनिश्चितता है। वास्तव में, बाढ़ व बारिश के कारण समाज का सबसे गरीब तबका अधिक प्रभावित होता है।
इतना ही नहीं बारिश व बाढ़ से जान-माल की क्षति के साथ-साथ प्रकृति को भी हानि पहुँचती है। बाढ़ न सिर्फ फसलों को बर्बाद करती है बल्कि आधारभूत ढाँचा, जैसे- सड़कें, रेल मार्गों, पुल और मानव बस्तियों को भी नुकसान पहुँचाती है। बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों में कई तरह की बीमारियाँ, जैसे- हैजा, आंत्रशोथ (Enteritis), हेपेटाईटिस एवं अन्य दूषित जल-जनित बीमारियाँ फैल जाती हैं। बहरहाल, यदि हम यहां आंकड़ों की बात करें तो राष्ट्रीय बाढ़ आयोग ने देश में 4 करोड़ हैक्टेयर भूमि को बाढ़ प्रभावित क्षेत्र घोषित किया है। असम, पश्चिम बंगाल और बिहार राज्य सबसे अधिक बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में से हैं। इसके अतिरिक्त उत्तर भारत की ज़्यादातर नदियाँ, विशेषकर पंजाब और उत्तर प्रदेश में बाढ़ लाती रहती हैं।
राजस्थान, गुजरात, हरियाणा और पंजाब आकस्मिक बाढ़ के कारण पिछले कुछ दशकों में जलमग्न होते रहे हैं। इसका कारण मानसूनी वर्षा की तीव्रता तथा मानव कार्यकलापों द्वारा प्राकृतिक अपवाह तंत्र का अवरुद्ध होना है। बादल फटना, वनों की लगातार कटाई, नगर नियोजन सही नहीं होना, नदियों में गाद का संचय बाढ़ के कुछ प्रमुख कारण हैं।तटबंधों, नहरों और रेलवे से संबंधित निर्माण व अन्य निर्माण कार्यों के कारण नदियों के जल-प्रवाह क्षमता में कमी आती है। अतः सतत् विकास के नज़रिये से बाढ़ के आकलन की ज़रूरत है। वास्तव में बाढ़ व सूखे दोनों का प्रबंधन किया जाना आज जरुरी है। बाढ़ से बचने के लिए पुनर्वनीकरण, जल निकास तंत्र में सुधार, वाटर-शेड प्रबंधन, मृदा संरक्षण जैसे उपाय किए जा सकते हैं।
इतना ही नहीं, सूचना तंत्र को और अधिक विकसित किए जाने की जरूरत है। आम लोगों को जागरूक भी किया जाना चाहिए।बाढ़ का सामना करने के लिये तैयार रहने हेतु बाढ़ पूर्वानुमान अति महत्त्वपूर्ण है तथा इसका देश भर में सघन विस्तार किया जाना चाहिए। इतना ही नहीं, बांध/तटबंध क्षति संबंधी अध्ययन व शोध कार्य किये जाने चाहिये तथा आपातकालीन कार्रवाई योजनाओं/आपदा प्रबंधन योजनाओं को समय समय पर तैयार किया जाना चाहिये और इन्हें आवधिक आधार पर अद्यतन भी किया जाना चाहिये। नदियों, नहरों, नालों, घाटियों तथा अचानक बाढ़-ग्रस्त होने वाले अन्य क्षेत्रों से परिचित रहने की आवश्यकता महत्ती है।सूचना के लिए रेडियो सुनना या टेलीविजन देखना बहुत जरूरी है ताकि बाढ़ के बारे में जानकारी मिल सके। जल नियोजन और प्रबंधन भी बेहद जरूरी है। (सुनील कुमार महला-विनायक फीचर्स)